चित्र गुगल साभार
सबकुछ तो दे दिया तुम्हें
अपनी नींद, चैन
भुख और प्यास
अब और क्या बचा है
मेरे पास।
कुछ भी तो नहीं है
सिवा चंद धुंधली यादों के।
उन यादगार लम्हों को ही
घूॅट घूटॅ कर पीता हॅु।
ख्वाबों को सिरहाने रख
एहसासों को बिछाता हुॅ।
जज्बातों को ओढ़कर
कोशीश करता हुॅ
गुजरे हुए लम्हों को
खींच कर उन्हें
अपने करीब लाने की।
पर क्या करू
पलकें भारी नहीं होती
और न ही
पहले की तरह चाॅद
बातें करता है।
रात गुजरती जा रही है
हाथ में पकड़े हुए
रेत की तरह
लम्हा - लम्हा।
बड़े मनुहार के बाद
चाॅद मुंडेर पर आकर
बैठता है।
मैने पुछा उससे
क्या हुआ
तुम मुझसे बात क्यों नही करते।
उसने कहा कि
क्या बात करू तुमसे
कुछ भी तो तुम्हारा नही रहा
बात करने को।
अपना अस्तित्व तक तुमने
उसे समर्पित कर दिया है।
मैं तो आज भी वही हुॅ
पर तुम!
अब तुम
तुम नही रहे।