अनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
तेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ।
दिल की आरजु कि एक बार मिलुॅ तुमसे
जिदां हुॅ मैं, तुम्हें बताना चाहता हुॅ।
झड़ जाते हैं जिन दरख्तों के पत्ते पतझड़ में
आती है उनपर भी बहारें, तुम्हे दिखाना चाहता हुॅ।
टुटा था जो साज ‘ए’ दिल तेरे चले जाने से
उसमें बजती हुई जलतरंगों को तुम्हें सुनाना चाहता हुॅ।
अनसुलझी बातों को सुलझाना चाहता हुॅ
तेरे बगैर अब मैं मुस्कुराना चाहता हुॅ।