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Monday, November 29, 2010

उदासी का सबब

चित्र गुगल साभार


तेरे ईश्क ने दिल को इस कदर भरमाया है
हर चेहरे में तेरा चेहरा नज़र आया है।

न पूछो मुझसे मेरी उदासी का सबब ऐ जहॉं वालों
गैरों ने नहीं हमें तो अपनों ने रूलाया है।

समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
जिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है।

कत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
देख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।

18 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना. शुभकामनाएं

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  2. सच कहूँ तो सुन्दर, "न पूछो मुझसे मेरी उदासी का सबब ऐ जहॉं वालों
    गैरों ने नहीं हमें तो अपनों ने रूलाया है"

    आपकी रचना का बेसब्री से इन्तजार रहता है, शायद "थोड़ी जान बाकी है मुझमें"

    काफी अंतराल दे देते हैं, आपकी कमी खलती है.
    पुनः साधुवाद.

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  3. अमित जी, अन्यथा नहीं लें, आपके कमेन्ट अंग्रेजी में होते हैं,
    कृपया इसे प्रयोग में लावें
    http://www.google.com/ime/transliteration/

    select Hindi in Google IME language and then install it,
    it works on "alt+shift".
    arvindjangid@rocketmail.com

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  4. कत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
    देख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।

    जबरदस्त शेर कही
    वाह वाह
    हृदिक शुभकामनाये

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  5. समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
    जिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है।

    sunder chitra ke sath behatareen gazal....

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  6. अच्छी गज़ल ....पर लग रहा है कि पहले भी कहीं पढ़ी है

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  7. ऐसा ही होता है । जिन पर हम ज्यादा यकीन करते हैं , वही हमें निराश करते हैं।

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  8. जमीर जी, अरविन्द जी, उपेन्द्र जी, दिपक जी आप सभी का शुक्रिया।
    अरविन्द जी आपकी नसीहत का मैं ख्याल रखुगॉं। शुक्रिया।

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  9. संगीता जी और जील जी आपकी टिपण्णी के लिए आभार। संगीता जी अभी मैंने अपने ब्लाग में जितनी भी रचनाएंं डाली है वे सारी मौलिक एवं पुर्ण रूप से काल्पनिक है तथा ये सारी मेरे द्वारा लिखी गई है। इन सभी रचनाओं का किसी दूसरे रचनाओं से कुछ लेना देना नहीं है। और अगर ऐसा होता है तो यह महज एक इत्तफाक ही होगा।

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  10. तेरे ईश्क ने दिल को इस कदर भरमाया है
    हर चेहरे में तेरा चेहरा नज़र आया है।

    क्या मतला है इसे कहते है इश्क का सुरूर..बहुत अच्छी गज़ल

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  11. आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  12. 'har chehre me tera chehra nazar aya hai'
    yahi to chahat ki had hai !

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  13. मुहब्बत में इन्हीं मर्हलों से गुज़रना पड़ता है
    आपका ये शेर अच्छा लगा:-
    "समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
    जिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है"

    किसी का एक शेर याद आ रहा है:-
    ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे,
    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

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  14. जब अपने ही दर्द दें तो किससे कहें - बहुत खूब

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  15. कत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
    देख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।

    बहुत खूबसूरत..........

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  16. बहुत ही सुन्‍दर रचना ।

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  17. bahut sundarta se shabdo ko sajaya hai

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