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Sunday, November 14, 2010

बेवफाई


ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
तेरी मदभरी आंखों से
तेरे कोमल हाथों के स्पर्श से
एक लहर दौड़ जाती है
मेरे नस-नस में शरारों सी।
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
एक अरसे से पहचानता हूं मैं।
मेरी दुनिया यूं तो सुनसान थी
मेरे दिल की बस्ती वीरान थी
तेरी मुस्कान ने उसमें एक फूल खिलाया था
तेरी सादगी ने मुझे जीना सिखाया था।
तेरी हरेक अदा को पहचानता हूं मैं
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं।
अचानक मेरी आंख खुली और
देखा ये तो एक ख्वाब था
चारों तरफ बिखरी थी कुछ यादें
अपने साथ लेकर फिर से चला मैं
जो कुछ भी मेरा अपना था।
फिर से देखा मैंने तुम्हें
एक शजर के साये में
यूं लगा जैसे
तुम भी इसी भीड़ का हिस्सा हो।
याद रखूंगा तुम्हें क्योंकि
तुम मेरे अतीत का किस्सा हो।
पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
कैसे करूं वफा इनसे
जिनका नाम ही बेवफाई है।

17 comments:

  1. आज तो दिल ही निकाल कर रख दिया
    किन शब्दो मे तारीफ करू इस लाजवाब कविता की

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  2. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है

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  3. जीवन्त शब्दों से परिपूर्ण "सुन्दर कविता"

    धन्यवाद.

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  4. सुन्दर भावाव्यक्ति

    जानता हूं ख्वाबों की दुनिया लाख बेहतर है हकीकत से
    न जाने फ़िर भी क्यों मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं

    लिखते रहिये

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  5. sirji..dont worry.. ghutan to hogi dagabazon ko vafa ki hayon mein..

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  6. तेरी मुस्कान ने उसमें एक फूल खिलाया था
    तेरी सादगी ने मुझे जीना सिखाया था।
    तेरी हरेक अदा को पहचानता हूं मैं
    ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं।

    सुंदर पंक्तियां

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  7. beautiful lines and eligible for praise.
    aapke panktiyo ke sambandh me do line kehna chahuga

    bahut dard hota hai
    jab koi apna
    bewafa ho jata hai
    karte hai chupane ki kosis
    bahut
    per kya kare yaaro
    dard najmo me chalak jata hai.

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  8. bewafa ki yadon ko sahejkar rakhna
    aur unke saath vafa nibhate rahna
    badi himmat ka kaam hai !
    waah kya kahna!

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  9. very nice..!! aapki kavita k bahut accha laga..!!

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  10. दुआ है ये ख्वाब हकीकत बने ......

    मजनू जी आज के दौर में वफा की उम्मीद निरर्थक है .....

    बहरहाल नज़्म इक मुकाम हासिल करती है .....

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  11. अमित जी
    नमस्कार !

    अच्छी भावनाप्रधान रचना है …
    पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
    तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
    कैसे करूं वफा इनसे
    जिनका नाम ही बेवफाई है…

    बंधु, ख़ुदा यही कहेगा -" वो अपना काम कर रहे हैं , आप अपना करो"
    :)

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. यूं लगा जैसे
    तुम भी इसी भीड़ का हिस्सा हो।
    याद रखूंगा तुम्हें क्योंकि
    तुम मेरे अतीत का किस्सा हो।
    पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
    तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
    कैसे करूं वफा इनसे
    जिनका नाम ही बेवफाई है।

    Sach kaha bhai...

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  13. कैसे करूं वफा इनसे
    जिनका नाम ही बेवफाई है।
    very nice sir...........

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