इस ब्लाग की सभी रचनाओं का सर्वाधिकार सुरक्षित है। बिना आज्ञा के इसका इस्तेमाल कापीराईट एक्ट के तहत दडंनीय अपराध होगा।

Saturday, December 25, 2010

पैसा

ये साल अपने साध्ंय बेला की ओर अग्रसर है और नया साल नई खुशियों के साथ उदय होने वाला है। इस साल के साथ साथ हम इस सदी का एक दशक भी पुरा कर लेगें। इन सालों में हमने बहुत कुछ खोया है तो बहुत कुछ पाया भी है। हॉ कुछ जख्म ऐसे जरूर लगे है जो शायद ही कभी भर पाये। उनकी टीस हमें आजन्म महसुस होती रहेगी। इस साल हमारे देश में जितने बड़े बड़े घोटालों का पर्दाफाश हुआ है शायद ही कभी इससे पहले ये देखने में आया हो। आशा करते है कि आने वाला साल हमारे देश के शुभ हो एवं हमारा देश तरक्की के ओर अग्रसर रहे। आज की पोस्ट इससे पहले भी आ चुकी है पर इस इसकी कमी एक बार फिर से महसुस हो रही है। आशा है आपलोग का प्यार पहले की ही तरह मिलता रहेगा।  
आप सभी ब्लागरों को मेरी तरफ से नए साल की ढेर सारी शुभकामनाए।




पैसा,
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाए।

पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तों से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।

पैसा,
गढ़ता है
रिश्तों की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झूठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।

पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगों को कुछ नजर नहीं आता।

पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते हैं।

पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि शायद हम बदल चुके हैं
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।

Tuesday, December 21, 2010

कभी रोते तो कभी मुस्कुराते रहे


चित्र गुगल साभार

जिस्त टुकड़ों में हम बिताते रहे
कभी रोते तो कभी मुस्कुराते रहे।


शमॉं भी बुझ गई तेरे इंतजार में
रौशनी के लिए दिल को जलाते रहे।


किसी ने कहा जो संगदिल तुझे
तेरी वफा के किस्से सुनाते रहे।


लोगों ने पुछा दैरो हरम का पता हमसे
तेरे घर की तरफ उगंलियॉं उठाते रहे।


वो जख्म दर जख्म देते रहे ‘अमित’
और हम रस्म-ए-मोहब्बत निभाते रहे।


Saturday, December 18, 2010

हमें गर्व है कि हम भारतीय है



बचपन में जब हम स्कुल जाया करते थे तो प्रार्थना के बाद ये लाइन हमेशा बोली जाती थी तब दिल में देशप्रेम का जज्बा भर उठता था। आज भी ये बाते सोलह आने सही है। क्योंकि हमारे पुर्वजों ने हमें गर्व करने लायक बहुत सारी चीजें दी। हमारे वो महान नेता जिन्हें याद करके आज भी हमारा सर श्रद्धा से झुक जाता है। या फिर वो दिलेर और साहसी क्रांतिकारी जिन्होने हसते हसते देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी। जिनकी वजह से आज हम आजाद भारत में सॉंस ले रहे है। उनलोगों ने जो भी किया भविष्य में आने वाली नस्लों के बारे में सोच कर किया। जिसकी वजह से आज हम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का हिस्सा बने हुए है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि हम अपनी आने वाली नस्लों के लिए क्या कर रहे है और क्या वे ये गर्व से कह सकेगें कि हमें गर्व है कि हम भारतीय है। आखिर हम उन्हे विरासत में गर्व करने लायक क्या देने जा रहे है भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से लिप्त देश। अराजकता एवं असहिष्णुता से भरा हुआ समाज जिसमें आज सिर्फ मैं का बोलबाला है हम का नहीे। वो हमें अवश्य याद करेगें लेकिन सृजनकर्ता के तौर पर नहीं विनाशकर्ता के रूप में। क्या हमारी आने वाली नस्ल आज के नेताओं को (यदि कुछ को छोड़ दे तो जिनकी गिनती उगॅंलियों पर हो जाएगी) वो इज्जत बख्श पाएगी जिसके हकदार महात्मा गॉंधी, सरदार पटेल, पंडित नेहरू आदि थे। जिन्हें जन्म लेते ही मिलावटी खाद्य पदार्थो से सामना हुआ हो अच्छे स्कुल कालेज में दाखिले के लिए डोनेशन देना पड़ा हो नौकरी करने के लिए पैसे या पहुॅच का इस्तेमाल करना पड़ा हो वो क्योंकर हमें याद करेगें। हॉं वे हमें याद करेगें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए, आर्दश घोटाले के लिए, ताबुत घोटाले के लिए,  कॉमनवेल्थ घोटाले के लिए, चारा घोटाले के लिए, प्रदुषित जलवायु के लिए, सड़को पर भेड़ बकरियों की तरह बढ़ते ट्रैफिक के लिए, दंगे और फसाद के लिए। अभी भी वक्त है हम आने वाली नस्ल के लिए बहुत कुछ कर सकते है। उन्हे एक स्वस्थ और सहयोगात्मक समाज एवं हिसांरहित और भयमुक्त वातावरण में सॉंस लेने दे। उन्हे एक ऐसा देश सौपे जो प्रगति के पथ पर अग्रसर हो। जहॉं सभी के सर पर छत हो और एक इंसान भुखा नही सोता हो। 

Tuesday, December 14, 2010

जिन्दगी

चित्र santabanta.com साभार

जिन्दगी आउगॉं कभी
तुमसे मिलने के लिए
अभी उलझा हॅु मैं
अपनी उलझनें सुलझाने में।
जो छोड़ी है सिलवटें तुमने
मेरे चेहरे पर
उन सभी का बारी बारी
हिसाब करने।
जिन्दगी आउगॉं कभी
तुमसे मिलने के लिए।
सुना है
तुम और वक्त मिलकर
खुब उधम मचाते हो।
क्या अमीर और क्या गरीब
सभी को एक समान सताते हो।
बालों की सफेदी और
झुकी हुई कमर
तेरी जुल्मतें बयॉं करती है।
तेरे साथ साथ अब
वक्त भी लोगों पर
हॅंसा करती है।
कोई तो आएगा
जो तुमसे
अपनी नजरें मिलाएगा
उस दिन मैं भी
तुम पर मुस्कुराउगॉं।
जिन्दगी आउगॉं कभी
तुमसे मिलने के लिए
अभी उलझा हॅु मैं
अपनी कुछ उलझनें सुलझाने मे।

Monday, December 13, 2010

ससंद हमले की नौवी बरसी पर नेताओ ने दी शहीदो को श्रद्धाजंली


ससंद हमले की नौवी बरसी पर शहीदों को नेताओ द्वारा श्रद्धाजंली अर्पित कर इस नौटंकी की इति श्री कर दी गई। हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसी लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर पर आज से नौ साल पहले हमला किया गया जिसमें लगभग नौ जवान शहीद हो गए। इन जवानों ने अपनी जान पर खेलकर जिन लोकतंत्र के पहरूओं की रक्षा की वही लोग आज उनके शहादत को दागदार कर रहे है। कितने शर्म की बात है कि ससंद भवन पर हमला करने वाला अफजल गुरू आज नौ साल बाद भी जिंदा है और शहीदों के परिजन उसकी फॉसी का इंतजार कर रहे है। एक खास तबके के लागों के कोपभाजन के शिकार से बचने के लिए ये लोग कितना घिनौना खेल खेल रहे है। आखिर जब हमारे देश की अदालत ने उसे फॉसी की सजा दे दी है तो क्या वजह है कि सरकार चुप है। माना कि हमारे देश में फॉसी की सजा पाए व्यक्ति को महामहीम के पास अपील करने की सहूलियत मिली हुई है लेकिन क्या ये उस लायक है कि इसकी फॉसी की सजा माफ कर दिया जाए। उसने हमारे देश की मर्यादा और उसकी अस्मिता पर हमला किया था। अगर इसे माफी मिल गई तो जरा सोचिए कि अराजक तत्वों के बीच क्या संदेश जाएगा और हमारे देश की क्या इज्जत रह जाएगी।  

Saturday, December 11, 2010

बलात्कार

चित्र गुगल साभार

एक औरत
बलात्कार की शिकार
खड़ी न्यायालय के कटघरे में
झेलने के लिए
सवालों की बौछार।

वकील ने पुछा
उससे एक सवाल
बताओ
कैसे किया उसने
तुम्हार शील भगं
कहॉं थे उसके हाथ
और कैसे उसने
तुम्हारे वस्त्र दिये थे उतार।

सुनकर ये सवाल
उस औरत के अंर्तमन में
मचा हाहाकार।

सोचा उसने
इनलोगों से बेहतर वो था
उसने जो भी किया
लोगों की निगाहों से
छुप कर किया।

पर यहॉं
लोगों की नजरों के सामने
खुलेआम
उसका हो रहा है
बलात्कार।

नितीश सरकार ने बढ़ाए एक और कदम

पॉच साल पहले बिहार में जो सुरज निकला था लगता है अब वो परवान चढ़ने लगा है। जिसका उदाहरण है नितीश सरकार के दूसरी बार सत्ता में आते ही भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने की शुरूआत करना। औरगांबाद के एमवीआई की संपत्ती जब्त होने के साथ ही बिहार के भ्रष्ट अधिकारियों एवं रिश्वतखोरों में हड़कम्प मचा हुआ है। आय से अधिक संपत्ति के मामलें में उनकी लगभग पैतालिस लाख रू0 की संपत्ति जब्त कर ली गई है और उनके मकान में स्कूल खोलने की तैयारी चल रही है। जरूरत है इसको आगे बढ़ाने की और उनके जैसे अन्य भ्रष्ट कर्मियों के उपर नकेल कसने की। सरकारी नौकरियों में जिस तरह से भ्रष्टाचार अपने चरम है अगर उसको खत्म करना है तो इस तरह के कानून को कठोरता पुर्वक लागू कर उस पर अमल करना जरूरी है। लोग सरकारी नौकरी इसलिए ही करना चाहते है कि वेतन के साथ साथ उपरी आय का एक जबरदस्त सिलसिला चल निकला है। इसलिए लोग येन केन प्राकरेण सरकारी नौकरी हासिल करना चाहते है। फिर चाहे वो अपनी योग्यता से मिल जाए या फिर पैसे के बल पर। क्योंकि लोग जानते है कि इसमें वेतन के साथ साथ हर महीने उपरी आय के तौर पर एक मोटी रकम हासिल होती है। सरकार ने जो कदम उठाए है उसके साथ साथ आम लोगो को भी समझना चाहिए कि सरकारी नौकरी और पावर जनता की सेवा करने के लिए मिलती है जिसका सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। इस मामले में बिहार ने कठोर कदम उठाकर कर देश की जनता एवं दूसरे राज्यों के सामने एक और मील का पत्थर खड़ा कर दिया है। आपका क्या कहना है।

Tuesday, December 7, 2010

बनारस में एक बार फिर लहुलुहान हुआ देश

चित्र  santabanta.com साभार

बनारस में एक बार फिर आतंकवादियों ने हमारी सुरक्षा प्रणाली को धत्ता बताते हुए एक हृदय विदारक घटना को अंजाम दिया। हर बार की तरह एक बार फिर से हमारे देश के नेताओं ने इस घटना पर अफसोस व्यक्त किया एवं इसकी घोर निदां की और जनता को आश्वासन दिया कि इस तरह की घटनाओ को अजांम देने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।  इन नेताओं की मोटी चमड़ी पर कोई फर्क नही पड़ने वाला।  जब भी इस तरह का कोई वाक्या होता है तो ये लोग निन्दा करके एवं मुआवजा देकर अपना पिडं छुड़ा लेते है। इन्हे मरने वालों के परिजनों का एवं घायल लोगों के दर्द को कोई एहसास नहीं होता क्योंकि इनमें इनके अपने नहीं होते है। ये तो ‘शुक्र है भगवान का कि इस घटना में ज्यादा क्षति नहीं हुई एवं सिर्फ एक बच्ची की जान गई। ये बातें सुनकर हमारी सरकार खुश हो सकती है हमारे नेता खुश हो सकते है लेकिन जरा कोई उन घरों में झॉंक कर देखे जिस घर से एक जान चली गई। कल तक जहॉं उस घर में उस बच्ची की हसीं गुजॉं करती थी आज उसके ‘शव पर लोग विलाप कर रहे है। क्या सरकार के आश्वासनों एव मुआवजों से उस घर की खुशियॉं लौट आएगीर्षोर्षो मरना तो एक दिन सभी को है लेकिन ऐसे नही ।हम सरकार चुनते है ताकि वो हमारी हितों एवं हमारी जान माल की सुरक्षा कर सके। प्रत्येक साल इस तरह की दो तीन घटनाएंं हो जाती है। उस हम अफसोस जताते है। फिर कुछ दिनों के बाद सब भुल जाते है। ये हमारी सरकार का फर्ज बनता है कि उन इन्सानियत के दुश्मनों को पकड़ कर सजा दे। लेकिन होता क्या है ये सब कुछ हमारी ऑंखों के सामने है। ससन्द भवन हमले का आरोपी अभी भी जीवित है, मुम्बई हमले का आरोपी कसाब अभी तक जीवित है और उस पर प्रति महीने लाखों खर्च किये जा रहे है। पाकिस्तान में बैठे उनके आका आराम से घूम रहे है। पिछले दिनों मुम्बई हमले की बरसी पर सरकार द्वारा बयान आया था कि पाकिस्तान इन हमले मे आरोपित दोषियों को सजा दे। लेकिन हम सभी लोग जानते है कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। अमेरिका में हुए वल्र्ड ट्रेड सेटंर हमले के बाद वैसा हादसा कभी दुहराया नहीं गया। इस हमले को लगभग दस साल होने को है। तो हम क्यों बार बार इस त्रासदी को झेलते हैर्षोर्षो आखिर ये दोष किसका है, हमारी निक्कमी सरकार का जो आकठं भ्रष्टाचार में डुबी है या फिर हमारी सुरक्षा प्रणालियों का । वजह चाहे जो भी हो हर बार भुक्तभोगी बेचारी निरीह जनता ही बनती है। मुझे याद आ रहा है `ए वेडनसडे´ फिल्म का एक डायलाग जिसमें कहा जाता है कि हम तो तुम्हे ऐसे ही मारेगें तुम क्या कर लोगे।

Saturday, December 4, 2010

बाल मजदूर

कुछ दिनों पहले मैं अपने एक दोस्त से मिलने जा रहा था। सुबह का समय था मैनें देखा कि तीन छोटे छोटे बच्चे जिनकी उम्र लगभग बारह साल के आस पास होगी मिट्टी के ढेर को टोकरी में उठा कर दूसरी जगह रख रहे थे।तभी मेरे दोस्त ने बताया कि तीन दिनों के अन्दर इनलोगों ने लगभग चार ट्राली मिट्टी की ढुलाई कर दी है। इनकी ये अवस्था काफी कुछ बयान करती है।


कुदरत ने इसके साथ ये कैसा मजाक किया है
कलम की जगह इसने हाथों में कुदाल लिया है।

लड़ते हैं ये रोज दुनिया से रोटी के वास्ते
बड़े ही दुर्गम और कॉटों से भरे है इनके रास्ते।

कुछ तो पिज्जा और बर्गर से भी मुहं फेरते है
ये मासुम बच्चे सिर्फ दो रोटी को तरसते है।

सामने आ भी जाए तो हम इन्हें दुत्कारते है
बगल में बैठे कुत्ते को हम प्यार से पुचकारते है।

इनकी बेबसी हमें बहुत कुछ सोचने को मजबुर करती है
इन मासुमों की जिन्दगी क्या कुत्तों से भी गई गुजरी है।


Monday, November 29, 2010

उदासी का सबब

चित्र गुगल साभार


तेरे ईश्क ने दिल को इस कदर भरमाया है
हर चेहरे में तेरा चेहरा नज़र आया है।

न पूछो मुझसे मेरी उदासी का सबब ऐ जहॉं वालों
गैरों ने नहीं हमें तो अपनों ने रूलाया है।

समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
जिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है।

कत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
देख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।

Thursday, November 25, 2010

अनजानी मंजिल की ओर





तेरी सुरमई आंखों में
तलाश रहा हूं अपनी तस्वीर
तेरे दिल की जमीन पर
ढूंढ़ रहा हूं एक आशियाना।

तुम्हारी मरमरी बांहों में
बसाना चाहता था
अपनी एक अलग दुनिया।

पर शायद ये मुमकिन नहीं
क्योंकि जाग चुका हूं मैं
एक गहरी नीन्द से।

लौट आया हूं मैं
ख्वाबों की दुनिया से
हकीकत की जमीं पर।

एक पल को लगा था ऐसा
जैसे सिमट गई हो सारी दुनिया
मेरे आगोश में।

फिर से मैंने
अपने आप को पाया
बिलकुल तन्हा और अकेला।

मेरे पास बची थी कुछ यादें
मेरे उन सुनहरे ख्वाबों की।
उनको सम्भाले हुए अपने जेहन में
बढ़ चला एक अनजानी मंजील की ओर।

Friday, November 19, 2010

नाम की लकीर

उनके दिल के किसी कोने में
अपनी भी एक तस्वीर होगी।

उनके हाथों में छोटी ही सही
अपने नाम की भी एक लकीर होगी।

हमने सोचा न था कि
इस तरह मिलोगी तुम हमसे।

पास रहकर भी दूर रहना
हमारी तकदीर होगी।

उनके हाथों में छोटी ही सही
अपने नाम की भी एक लकीर होगी।

Sunday, November 14, 2010

बेवफाई


ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
तेरी मदभरी आंखों से
तेरे कोमल हाथों के स्पर्श से
एक लहर दौड़ जाती है
मेरे नस-नस में शरारों सी।
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
एक अरसे से पहचानता हूं मैं।
मेरी दुनिया यूं तो सुनसान थी
मेरे दिल की बस्ती वीरान थी
तेरी मुस्कान ने उसमें एक फूल खिलाया था
तेरी सादगी ने मुझे जीना सिखाया था।
तेरी हरेक अदा को पहचानता हूं मैं
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं।
अचानक मेरी आंख खुली और
देखा ये तो एक ख्वाब था
चारों तरफ बिखरी थी कुछ यादें
अपने साथ लेकर फिर से चला मैं
जो कुछ भी मेरा अपना था।
फिर से देखा मैंने तुम्हें
एक शजर के साये में
यूं लगा जैसे
तुम भी इसी भीड़ का हिस्सा हो।
याद रखूंगा तुम्हें क्योंकि
तुम मेरे अतीत का किस्सा हो।
पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
कैसे करूं वफा इनसे
जिनका नाम ही बेवफाई है।

Tuesday, November 9, 2010

प्यार का असर



ऐसी भी क्या बेरूखी कि वो नही आए
जान जाएगी मेरी उनके इन्तजार में।

जुस्तजु थी जिनकी मेरे दिल को
नज़र आए भी वो तो थे हिजाब में।

पी ले गर कोई तेरी मस्त निगाहों से
वो नशा आता नहीं फिर शराब में।

देख `अमित´ अब उनके प्यार का असर
घर से बेघर हुए हम तेरे फिराक़ मे।

Monday, November 8, 2010

भ्रष्टाचार

अरविन्द जी का आज एक आलेख पढ़ा भ्रष्टाचार के बारे में। जिसमें उन्होंने एक बात का जिक्र किया है कि तुम पढ़े लिखे लोग कुए में डुब मरो पत्थर उपर से मैं डाल दुगॉ। बात भी सही है। हमारा देश आज भ्रष्टाचार के मामले में ‘शायद 87 वें नम्बर पर है। इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे जैसे पढ़े लिखे लोग। क्योंकि सरकारी नौकरी में पढ़े लिखे लोग ही जाते है। जिन लोगो ने सरकारी नौकरी प्राप्त कर ली समझ लिजिए उन्होंने भ्रष्टाचार का लाईसेंस ले लिया। आज सरकारी कार्यालय में एक चपरासी से लेकर अफसर तक सारे भ्रष्ट है। कोई पॉंच रूपये की चोरी कर रहा है तो कोई पचास हजार की। इनलोगों को सह मिलती है इनके उपर बैठे नेताओं से। ऐसे कितने नेता हैं जिन्होंने कुर्सी इस अरमान से सम्भाली है कि इन्हें देश या समाज की सेवा करनी है। वरना क्या वजह है कि कुर्सी मिलने से पहले जिनके पास रहने के लिए सही से अपना एक अदद मकान नहीं होता वो पॉंच साल बाद ही करोड़ो में खेलने लगते है, रहने के लिए एक अदद कोठी और घूमने के एक नहीं चार पॉच गाड़ियॉं हो जाती है।जिस तरह से एक बगुला नदी किनारे इस ताक में खड़ा रहता है कि कब कोई मछली दिखाई पड़े और उसे वो लपक ले। ठीक उसी तरह से अपने आप को जनता के सेवक बताने वाले ये नेता और अफसर भी इसी ताक में रहते है कि कब कोई योजना पारित हो और उसे दीमक की तरह चाट जाए। वैसे इस भ्रष्टाचार को फैलने में ये लोग ही नही आम जनता भी उतनी ही दोषी है जितने कि ये लोग। मैं बिहार राज्य का निवासी हुंं। भ्रष्टाचार तो यहॉं एक छुआछूत की बीमारी की तरह फैला हुआ है। बानगी देखिए- हाल ही में हुए शिक्षक बहाली में कई ऐसे लोग भी शिक्षक बने जिन्हे सही तरीके से ये भी नहीं पता कि हमारे देश का राष्ट्रपति कौन है। सोचिए जरा वे बच्चों को कैसी शिक्षा देगें। वैसे लोग अच्छी तरह से जानते है कि निम्न पदों के लिए वे उपयुक्त नहीं है। बाबजूद इसके पैसे दे कर ये लोग नौकरी पा जाते है और उपयुक्त लोग बाहर ही रह जाते है। भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ है पैसा। क्योंकि हमारे समाज में पैसे से ही किसी इंसान की पहचान होती है। जिसके पास जितना पैसा होता है उसका रूतवा उतना ही बड़ा होता है। इसांनियत, ईमानदारी, सहिष्णुता ये सारी बातें किताबी और बीते दौर की हो चली है। आज के दौर में अगर गॉंधी जी होते तो ‘शायद उन्हें भी समाज के कटाक्ष और दुत्कार का सामना करना पड़ता। एक कहावत है बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रूपैया। आज के जमाने पर ये बिल्कुल फिट बैठती है।

Sunday, November 7, 2010

मेरा दिल तेरा हो गया है


ना जाने मेरा दिल कहां खो गया है
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।
खो गई इन आंखों की नीन्द
और चैन कहीं खो गया है।
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।
जाड़े कि गुनगुनी धूप में
बारिश की हरेक बून्द में
तेरा ही अक्स नज़र आता है
फूलों की खुश्बू में भी तुम हो मुझे पता है।
जबसे तुम्हें देखा
सारा समां रंगीन हो गया है।
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।
हर पल चाहे मेरा दिल
तुझको ही देखा करूं
जब तुम नहीं हो मेरे पास
तुमको ही सोचा करूं।
ये प्यारा-प्यारा चेहरा जिस दिन से देखा है,
ज़िन्दा हूं पर जां कोई और ले गया है।
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।

Thursday, November 4, 2010

दिवाली

सभी को दिपावली की शुभकामनाएं





ना जाने इस बार ये
कैसी दिवाली आई है
कैसे खरीदे खील-बताशे
कमरतोड़ महगॉंई है।


दिवाली तो कुछ लोगों के लिए है
बाकी का निकला दिवाला है
कैसे सजाएं पुजा की थाली
मुंह से भी दूर निवाला है।

फुलझड़ियॉं, राकेट और पटाखे
कहॉं से ये सब लाउं मैं
राह देखते होगें बच्चे
कैसे अब घर जाउं मैं।

फिर भी दरवाजे पर मैंने
आशा का एक दीप जलाया है
आएगी अपने घर भी खुशियॉं
दिल को यही समझाया है।

Tuesday, November 2, 2010

वो लड.की



उसको देखता हूं तो लगता है यूं
जैसे सुबह की लालिमा लिए
आसमां की क्षितिज पर
एक तारा टिमटिमा रहा हो।
उसकी खामोश निगाहें
कुछ कहना चाहती है मुझसे
होठों पर है ढेर सारी बातें
फिर भी न जाने क्यूं चुप है।
हंसती है वो तो
चमन में फूल खिलते हैं।
बात करती है तो लगता है
दूर कहीं झरने बहते हैं।
उसकी शोख और चंचल अदाएं
मुझको दिवाना बनाती है।
उसकी सादगी हर पल
एक नया संगीत सुनाती है।
इतना तो पता है कि
उसको भी मुझसे प्यार है।
कभी तो नज़र उठेगी मेरी तरफ,
उस वक्त का इन्तजार है।

Thursday, October 28, 2010

कितने दूर, कितने पास



बैठा हूं शब के अंधेरे में
तेरी यादों को सीने से लगाए।
पहरों बीत गए
फलक पर निकल आया है चांद।
उसकी चांदनी कांटों की तरह चूभ रही है
मेरे दिल के किसी कोने में।
वो मुस्कुरा रहा है मेरी बेबसी पर
जैसे वो कह रहा हो मुझसे
छोड. दो जिद मुझे पाने की
क्या हुआ जो तुम मुझसे प्यार करते हो।
शाम होते ही तुम मेरा इन्तजार करते हो।
मेरा हमसाया तो ये आसमां है
इसके सिवा मुझे और जाना कहां है
मत देखो मुझे इन प्यार भरी नज़रों से
मेरे अक्स के सिवा
तुम कुछ और नहीं पाओगे
तड.पोगे तुम और
टूटकर बिखर जाओगे।
मुझे लगा
चांद और तुममें कितना फर्क है
वो दूर होते हुए भी
सबके कितने करीब है।
और हम
करीब होते हुए भी
कितने दूर हैं।

Monday, October 25, 2010

जुल्म की इन्तेहा

मैंने तुम्हे चाहा
ये मेरे इश्क की इब्तदा थी
अब देखना ये है कि
तेरे जुल्म की
इन्तेहा क्या है।

Saturday, October 23, 2010

लघु कथा

एक प्यारी सी खुबसुरत लड.की थी। वह बचपन से ही अंधी थी। उसे हमेशा दूसरों पर निर्भर रहना पड.ता था। हर काम में उसे दूसरों की सहायता लेनी पड.ती थी। एक लड.का था जो हमेशा उसकी मदद किया करता था तथा उसकी हर जरूरत के वक्त उसके साथ खड.ा रहता था। वो लड.की हमेशा उससे कहती थी कि अगर उसकी ऑंखें होती तो वह उससे शादी कर लेती। एक दिन की बात है कि किसी ने उस अंधी लड.की अपनी ऑंखें दान कर दी। उस लड.की को ऑपरेशन के द्वारा वो ऑंखें लगा दी गई। कुछ दिनों के बाद जब वो ठीक होकर अस्पताल से घर आई तो उस लड.के से मिली जो हमेशा उसकी मदद किया करता था। उसने देखा कि वो लड.का अंधा था। उस लड.के ने उस लड.की से पूछा- क्या अब वो उससे शादी करेगी। लड.की ने जवाब दिया - नही! मैं एक अंधे लड.के से कैसे शादी कर सकती हुं। मेरी तो पुरी जिन्दगी खराब हो जाएगी। वो लड.का मुस्कुराया और उसने लड.की को  एक कागज टुकड.ा दिया और हमेशा के लिए उसकी जिन्दगी से चला गया। उस कागज पर लिखा था `मेरी ऑंखों का ख्याल रखना´।

Tuesday, October 19, 2010

दिल के अरमान



मैनें लिख कर दी थी तुम्हे
अपनी चन्द कविताएं।
शब्दों की जगह
उकेरे थे मैनें
अपने जज्बात।
निकाल कर रख दिए थे मैनें
कागज के एक
छोटे से टुकडे. पर
अपने दिल के सारे अरमान।
इस ख्याल में कि
शायद
मेरी पाक मोहब्बत
तेरे दिल की गहराईयों तक
पैबस्त हो जाए।
पर मेरे सारे जज्बात
हर्फ-दर-हर्फ
बिखर गए।
जब मैंने ये जाना कि
तुम्हारी जिदंगी में
मेरी जगह
किसी और ने ले ली है।

Monday, October 18, 2010

निराशा



माना कि जिन्दगी को
घोर निराशाओं ने घेरा है।
दूर क्षितिज की ओर देखो
आने वाला एक नया सवेरा है।

फैलने दो आशा की किरण को
जिन्दगी रूपी जमीं पर
तुम्हारे आस-पास ही कहीं
तुम्हारी खुशियों का बसेरा है।

क्यों निराश होते हो तुम
ये तो माया जाल है
चन्द दिनों की है ये दुनिया
फिर क्या तेरा और क्या मेरा है।

Friday, October 15, 2010

अर्ज किया है......


(1)
जीते रहे हम जिनकी खुशी के लिए
वो रोने भी न आए मेरे मरने के बाद

(2)
ऐ खुदा किसी को ऐसी खुदाई ना दे
प्यार दे इस दिल में तो जुदाई ना दे

(3)
जो तड.पे ही नही किसी की याद में
वो क्या जाने इन्तजार क्या होता है।
जिसने महसुस ही नही किया दर्द को
वो क्या जाने प्यार क्या होता है।

Thursday, October 14, 2010


कल रात ना जाने क्या बात हुई
तेरी याद आई और बरसात हुई।

शुरू हुए अपने अत्फ के किस्से
जब आपकी और मेरी मुलाकात हुई।

तेरे ही हुस्न का जलाल है ये
विरां सी जिन्दगी भी गुलजार हुई।

तेरे ही अफसाने गुंजते हैं मेरे अंजुमन में
मेरी हर शाम अब तो जश्न-ए-बहार हुई।

Wednesday, October 13, 2010

जॉं लुटाने वाला

युं ही नही मिलता दुनिया में कोई
दिल को लगाने वाला
मुद्दतें बीत जाती हैं
तब जाकर मिलता है कोई
किसी पे अपनी जॉं लुटाने वाला।

Sunday, October 10, 2010

रिश्ता


कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं

जो हम कह नही पाते

और तुम समझ नहीं पाते।

एक अन्जाना सा रिश्ता

एक नाजुक सा बंधन

गर समझ जाते तुम तो

मोहब्बत की तासीर से

बच नहीं पाते।

ये कैसी तिश्नगी है

क्या कहंु तुमसे

तसब्बुर में भी तेरे बगैर

हम रह नहीं पाते।

जी रहे हैं हम

नदी के दो किनारों की तरह

जो साथ तो चलते हैं मगर

एक-दूसरे से कभी मिल नहीं पाते।

कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं

जो हम कह नही पाते

और तुम समझ नहीं पाते।

Monday, September 27, 2010

सपनों से भी आगे





आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां तेरा प्यार फैला है
आसमां की तरह
हवाओं की जगह फैली है
तेरे जिस्म की भीनी-भीनी सी खुश्बू।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां बादलों की जगह
लहरा रही है तेरी जुल्फें
तेरी आंखों जैसी गहराई है समन्दर में
फूलों में चटख रही है
तेरे सुर्ख गुलाबी गालों की रंगत।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।
जहां दिन शुरू होता है
तेरी एक अंगड़ाई से
पलकों की जुिम्बश से
जहां बिखर जाती है शाम
पंछियों ने सीखा है गाना
तेरी पायल की रूनझुन से
पेड़ों ने फैला रखा है
जहां तेरे आंचल की छांव।
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में।

Monday, September 20, 2010

बचपन

मैंने देखा
देश के भविश्य को
कुपोशण से ग्रसित
भुख से रोता-बिलखता हुआ।
पेट की आग को
शान्त करने के लिए
कुड़े और कचरे के ढेर से
रोटियों के टुकड़े ढंुंढता हुआ।
अपनी छोटी मोटी जरूरतों को
पुरा करने के लिए
चोरियॉं करता हुआ।
बदलते मौसम के
थपेड़ों को सहकर
बेफिक्री से फुटपाथों पर
शनै शनै गुजरता हुआ बचपन।
छोटी छोटी खुिशयों में
अपने अस्तित्व को
तलाश करता हुआ बचपन।
चाय की दुकानों, रेहड़ियों पर
झुठे बर्तनों को
साफ करता हुआ बचपन।
जिसके लिए
पुस्तकों का कोई मतलब नहीं
और न ही
स्कूलों के कोई मायने है।
हर उस चीज के लिए
जिस पर उसका
संवैधानिक अधिकार है
तरसता हुआ बचपन।

Friday, September 10, 2010

दिल्लगी


तुमने की दिल्लगी, हमने तो तुम्हें दिल में बसाया है।
तुम्हें ना सही, तेरी यादों को अपना बनाया है।

आज भी ये निगाहें तेरी राह देखती है।
आने-जाने वालों से तेरा पता पूछती है।

इस दिले नादान को आज भी तेरा इन्तजार है।
झूठा ही सही एक बार तो कहा होता, हमें तुमसे प्यार है।

मैं कोई वक्त नहीं जिसे यूं ही भूल जाओगी तुम,
एक एहसास हूं मैं हर पल करीब पाओगी तुम।

आज बेशक मेरे प्यार की जरूरत नहीं है तुम्हें,
एक दिन आएगा, तब बहुत पछताओगी तुम।

तलाश करोगी मुझे दर-ब-दर सहराओं में
फिर भी मेरे अक्स को छू नहीं पाओगी तुम।

खुदा की एक हंसी नेमत को तुने ठुकराया है,
कयामत तक भी कहीं सुकूं नहीं पाओगी तुम।

सभी को ईद की शुभकामनाएं।

Wednesday, September 8, 2010

चुनावी दस्तक

बिहार में एक बार फिर से रणभेरी बज चुकी है। सभी दलों ने अपनी तैयारियॉं शुरू कर दी है। एक बार फिर से वो वक्त आ गया है जब सारे नेता जनता की रहमो करम पे होते है। गरीबी, महगॉंई और बेबसी के बोझ तले दबी हुई जनता अचानक उन्हें भगवान दिखाई देने लगती है। पॉंच सालों तक जिस जनता को दूध में पड़ी हुई मक्खी की तरह दुत्कार दिया जाता है, वो एकदम से उन्हे अपना तारणहार दिखाई देने लगता है। खैर ये लोकतन्त्र है और लोकतन्त्र में ये सब तो चलता रहता है। परन्तु अब बात कुछ राजनीति की। चुनाव के वक्त सभी छुटभैये नेताओं से लेकर बड़े नेताओं तक में जिस चीज की मारा मारी होती है वो है टिकट हासिल करना। येन केन प्राकरेण चाहे धन बल द्वारा या बाहुबल के द्वारा। क्या हमे नही लगता संविधान में कुछ संशोधन करने की जरूरत है। जरा सोचिए, हमारे देश की राजनीति में कोई भी महिला या पुरूष चुनाव लड़ सकता है। बशर्ते वो मानसिक रूप से बीमार न हो, वह भारत का नागरिक हो तथा वह दिवालिया न हो और उसपर किसी तरह का कोई आरोप सिद्ध न हुआ हो। लेकिन इसके इतर भी कुछ चीजें है जिसपर हमें ध्यान देने की जरूरत है। जरा सोचिए, एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी को भी चपरासी पद पर कार्य करने के लिए कुछ आवश्यक अहर्ताओं को पुरा करना पड़ता है। मसलन शैक्षणिक योग्यता। एक चपरासी को आफिस में झाडु लगाने एवं चाय नास्ता करानेक की नौकरी पाने के लिए कम से कम आठंवी पास होना होता है और उस पद पर काम करने के लिए उसे एक परीक्षा पास करनी होती है। लेकिन हमारे नेताओं को जिनके हाथ में पुरे देश एवं राज्य की बागडोर होती है, उनके लिए ऐसा कोई भी नियम या कायदा कानुन नहीं है। एक अनपढ़ व्यक्ति भी हमारे राज्य का मुख्यमन्त्री या देश का प्रधानमन्त्री बन सकता है और पढ़े लिखे आफिसर उन्हें सल्युट करते है। हमारे नेताओं की सेवा समाप्ति की भी कोई नििश्चत उम्र नहीं होती। जबतक उनकी मर्जी है तबतक वे राजनीति कर सकतें है अथवा किसी भी पद पर बने रह सकते है। जबकि सरकारी कार्यालयों एवं प्राईवेट संस्थानों में साठ सालों के बाद ये कह कर कि उम्र के इस पड़ाव पर कार्य करने की क्षमता चुकने लगती है, उनकी सेवा समाप्त कर दी जाती है। जब एक आम आदमी की काम करने की क्षमता साठ सालों के बाद खत्म होने लगती है तो जरा बताईये नेताओ ने ऐसा कौन सा अमृत पी रखा होता है जो मृत्यु तक वे राजनीति में दखल देते रहते है या किसी न किसी पद पर आसिन रहते है। जब साठ साल के बाद वे लोग एक आफिस का काम ठीक ढंग से नही कर सकते तो हमारे नेता पुरे देश अथवा पुरे राज्य का काम कैसे कर सकते है। ये लोकतन्त्र है और लोकतन्त्र ``जनता का जनता के लिए और जनता के द्वारा किया जाने वाला शासन होता है। नेता और सरकारी कर्मचारी जनता के सेवक होते है। कोई भी सरकारी सेवक किसी भी तरह के घोटाले या गलत आचरण में पकड़ा जाता है तो उसे तत्काल सेवा से विमुक्त कर दिया जाता है एवं उसके वेतन भुगतान पर रोक लगा दी जाती हैै, जबतक कि उसके उपर दायर किए गए मुकदमें का फैसला न हो जाए। लेेकिन हमारे नेताओं के साथ ऐसा नही होता। लाखों करोड़ो डकारने के बाद भी वो शान से घुमते हैं एवं उन्हें वो सारी सहुलियतें मिलती रहती है जो उन्हें हासिल होती है, जबतक कि वो आरोपी सिद्ध नहीं हो जाते। जिस तरह से इस लोकतन्त्र रूपी मकान को सही सलामत रखने के लिए सरकारी कर्मचारी रूपी खंभे की जरूरत होती है, उसी तरह हमारे नेता भी इस लोकतत्रं के मजबुत खंभे है। फिर इनके लिए दो अलग अलग नीति क्यों! 

Friday, September 3, 2010

जन्मदिन

आज मेरे दोस्त का जन्मदिन है इस ब्लाग के द्वारा आप लोग भी उसे बधाई दें। धन्यवाद


आज के दिन एक परी दुनिया में आई थी
किसी की बगिया में कली बनकर मुस्काई थी।
सॉंवली रंगत और ऑंखे उसकी बड़ी बड़ी थी
बहुत ही मासुम थी वो पर थोड़ी सी नकचढ़ी थी।
मम्मी पापा की लाडली और भाईयों की जान थी
थोड़ी शरारती थी पर सारे घर की शान थी।
समय गुजरता गया और वो निखरती गई
बचपन ने साथ छोड़ा और वो जवॉं हो गई।
जब मैंने देखा उसे तो मुझे कुछ हो गया
उसकी प्यारी सी मुस्कुराहट में मैं कही खो गया।
उसका वो शरमाना और नज़रें उठाकर धीरे से मुस्कुराना
पहले तो -झगड़ना और फिर मान जाना।
सच कहंु तो मुझे भा गई और
मुझे पता भी न चला
कब चोरी से मेरे दिल में आ गई।
अब तो हालात ये है कि
हर जगह वो ही नज़र आती है।
जागते हुए तो छोड़ो
सपने में भी सताती है।
इतना तो पता है कि उसको भी मुझसे प्यार है
कभी तो नज़र उठेगी मेरी तरफ
उस वक्त का इन्तजार हैै।

Wednesday, September 1, 2010

ऐतबार

वो और होंगे जिन्हें मौत आ गई होगी,
दर्द सहकर ही जिन्दगी को जिया है मैंने।
कभी अपनों ने रूलाया,
कभी दुनिया ने सताया,
हंसते-हंसते अश्कों को पिया है मैंने,
दर्द सहकर ही जिन्दगी को जिया है मैंने।
अपनी तो आदत है कि,
हर किसी को अपना मान लेते हैं।
बाद में वो लोग ही,
हमारी जान लेते हैं।
हर किसी पे खुद से ज्यादा
ऐतबार किया है मैनें,
दर्द सहकर ही जिन्दगी को जिया है मैंने।

Friday, August 27, 2010

इन्तजार

सारी जिन्दगी जिसे ढूंढते रहे हम,
सारी जिन्दगी जिसका इन्तजार था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।
यूं तो बहुत है गुल इस चमन में,
पर जिस पर नज़र गई,
वो किसी और का हमराज था।
जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।
उनकी हाथों का खंजर जो,
भीगा है मेरे खून-ए-जिगर से।
मेरे उस जिगर को,
कभी उनसे ही प्यार था।
़जब वो मिला मुझे तो पता चला,
वो मेरी ही मौत का तलबगार था।

Sunday, August 22, 2010

हसीन लम्हें












आपके प्यार के वो हसीन लम्हें हम भुलाए कैसें
दिल पे इतने जख्म हैं उन्हें दिखाए कैसें ।
आज भी ये दिल धड़कता है आपके लिए
आपको हम बताएं तो बताएं कैसे
गुजर गया वो जमाना जब हम साथ थे,
गमों से दूर और खूशी के पास थे।
हाथों से हाथ छूट गए,
दिल के रिश्ते टूट गए।
छलक आते हैं आंसू इन आंखों में,
बेदर्द जमाने से उसे छुपाए कैसे।
आपके प्यार के वो हसीन लम्हें हम भुलाए कैसें।
बीत गए दिन, महीने और साल,
पलट कर उन्होंने कभी पूछा न मेरा हाल।
गिला नहीं के वो भूल गए मेरा प्यार,
हम तो आखिरी सांस तक करेंगे आपका इन्तजार।
आप जान हो मेरी आपको इस दिल से मिटाए कैसे,
आपके प्यार के वो हसीन लम्हें हम भुलाए कैसें!

Saturday, August 7, 2010

तन्हाईयॉं


जब कभी मैं
तन्हाईयों से घबरा कर
अपनी ऑंखें बन्द करता हंु।
अक्सर
तन्हा होते हुए भी
मैं तन्हा नही रह पाता हुंं।
पता नही कहॉं से वो
मुस्कुराती और इठलाती हुई आ जाती है।
थाम कर मेरा हाथ अपने हाथों में
दूर बहुत दूर ले जाती है।
ले कर मुझे अपनी आगोश में
प्यार से मेरे गालों को चुमती है।
पहरों इसी तरह बैठ कर हम
एक दूसरे को देखा करते है।
पता ही नहीं चलता
कब रात घिर आई और
कब सबेरा हो गया।
वास्तव में
उसने मेरा साथ छोड़ा है
उसकी यादों ने नही।
वो अब भी मुझसे मिलती है
कभी मेरी यादों में
तो कभी मेरी तन्हाईयों में।
और इस तरह
अक्सर
मैं तन्हा होते हुए भी
तन्हा नहीं रह पाता हंुं।

Tuesday, July 27, 2010

शहर

mWaps& mWaps cus gq,

?kjksa vkSj egyksa ds

’kgj esa vkdj

u tkus dSls [kks x, geA

fey ldk u gels ,d ?kj

blfy, QqVikFk is gh lks x, geA

vk/kh jkr dks

,d xkM+h vkbZ vkSj

mlesa ls dqN yksx fudy vk,A

cksys gel]s

QqVikFk is lksrs gks

dqN u dqN rks ysxsa geA

vkSj oks

lkjk lkeku ysdj pys x,

mUgs [kM+s cl ns[krs jgs geA

lqcg

yksxksa dh utjksa ls cprk gqvk

pyk tk jgk Fkk

LVs’ku dh vksjA

dh dqN iqfyl okys vk,

vkSj idM+ dj

ys x, FkkusA

cksys lj]

vkardoknh dks idM+dj ys vk, geA

bruk lc gksus ds ckn

cl ,d gh gS xe

eSa D;ks x;k ml vksj

tgkWa dksbZ bUlkWa clrk ugh

pkjks rjQ ng’kr xnhZ vkSj ywVekj gS

yksx xkWao dks dgrs gS

eS dgrk gqWa

;s ’kgj gh csdkj gSA

Saturday, July 24, 2010

पैसा

पैसा,
बन चुका है लोगों का ईमान
कुचल कर रख दी है
इसने लोगों की संवेदनाएंं।
पैसा,
कहीं ज्यादा बड़ा है
इंसानी रिश्तोें से
आपसी प्रेम और भाईचारे से।
पैसा,
गढ़ता है
रिश्तोें की बिल्कुल नई परिभाषा।
जिसके चारों तरफ बस
झुठ, फरेब और आडम्बरों की
एक अलग दुनिया है।
पैसा,
काबिज है लोगों की सोच पर
इस कदर जकड़ रखा है कि
सिवा इसके
लोगोेंं को कुछ नज़र नहीं आता।
पैसा,
जो चलायमान है
कभी एक जगह नहीं रहता।
फिर भी लोग
इसके पीछे दिवानों की तरह
सारी जिन्दगी भागते है।
पैसा,
चाहे जितना एकत्र करो
इसकी लिप्सा कभी खत्म नहीं होती।
क्या हमें
इसका एहसास नहीं होता
कि ‘शायद हम बदल चुके हैै
उस रक्त पिपासु राक्षस की तरह।
फर्क सिर्फ इतना है कि
उसे प्यास है खुन की
और हमें पैसों की।

Saturday, June 26, 2010

मॉं

रोज
जब में निकलता हुू
अपने घर से ।
थोड़ी ही दुर पर
ग्न्दे और फटे
चीथड़ों से लिपटे
मिलते है कुछ बच्चे।
दो चार डण्डे और
एक बड़ी सी फटी पालिथिन
जिसने घेर रखा है
जमीं का एक छोटा सा टुकड़ा।
उसके अन्दर बैठी है
उन बच्चों की मॉं
बिल्कुल बेबस और निरीह।
बाहर
कुछ ईटों को जोड़ कर
बना रखा है
उसने एक चुल्हा।
एक भगोने में
ना जाने क्या पक रहा है
शायद कल के मॉंगे हुए
कुछ चावल है।
सारे बच्चे
बहुत ही उत्सुकता से
उस चुल्हे को घेरे है।
उनकी मॉं ने
डाल दिया है
अधपके चावल नमक के साथ
उनकी पत्तलो पर।
सारे टूट पड़ते है
एक साथ
अपने अपने पत्तलों पर
और चन्द मिनटों में ही
चट कर जाते है
अपने हिस्से का चावल।
एक बार फिर से
मस्त होकर
सारे बच्चों ने
खेलना शुरू कर दिया है।
मॉं उठती है
अपने हलक को
गीला करती है
पानी के चन्द घुंंटों से।
और देखती है
अपने उन बच्चों को
बड़े ही ममत्व भाव से।
जिन्हे
इस बात का इल्म भी नही
कि मॉं
आज तीसरे दिन भी
भुखी रह गई।